ओ३म्
सच्चे तीर्थ क्या हैं?
तीर्थों में स्नान करने से अन्तःकरण पवित्र नहीं होता―
नित्यकर्मपरित्यागान्मार्गे संसर्गदोषतः ।
व्यर्थं तीर्थांधिगमनं पापमेवाऽवशिष्यते ।।
क्षालयन्ति हि तीर्थानि सर्वथा देहजं मलम् ।
मानसं क्षालितुं तानि न समर्थानि वै नृप ।।
शक्तानि यदि चेत्तानि गङ्गातीरनिवासिनः ।
मुनयो द्रोहसंयुक्ताः कथं स्युर्भावितेश्वराः ।।
―(देवीभा० ६/१२।२२-२४)
भावार्थ―नित्यकर्मों के छूट जाने से और मार्ग के संसर्गदोष के कारण तीर्थों में जाना व्यर्थ ही है, तीर्थों में धक्के खाने से पाप ही होता है। गङ्गा आदि तीर्थों में स्नान करने से शरीर का मल ही धुलता है। हे राजन ! ये जलमय तीर्थ मानसिक दोषों को धोने में सर्वथा असमर्थ हैं। यदि इन जलमय तीर्थों में चित्त को शुद्ध करने की क्षमता होती तो गङ्गा के किनारे पर रहनेवाले वसिष्ठ और विश्वामित्र आदि मुनियों में द्रोह क्यों रहता?
सच्चे तीर्थ निम्न हैं―
सत्यतीर्थं क्षमातीर्थं तीर्थमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वभूतदयातीर्थं तीर्थमार्जवमेव च ।।
ज्ञानतीर्थं तपस्तीर्थं कथितं तीर्थसप्तकम् ।
सर्वभूतदयातीर्थे विशुद्धिर्मनसो भवेत् ।।
न तोयपूतदेहस्य स्नानमित्यभिधीयते ।
स स्नातो यस्य वै पुंसः सुविशुद्धं मनोगतम् ।।
―(स्कन्द० वैष्णव० अयोध्या० १०/४६-४८)
भावार्थ―सत्य-भाषण तीर्थ है, क्षमा तीर्थ है, इन्द्रियों को वश में रखना [जितेन्द्रियता] तीर्थ है, सब प्राणियों पर दया करना तीर्थ है, कोमलता भी तीर्थ है, ज्ञान तीर्थ है, तप तीर्थ है―ये सात तीर्थ बताये गये हैं। सब प्राणियों पर दया करना रुपी तीर्थ में स्नान करने से मन पवित्र हो जाता है। पानी में शरीर को डुबा लेने से स्नान नहीं हो जाता, वस्तुतः उसी मनुष्य ने स्नान किया है, जिसका अन्तःकरण निर्मल हो गया है।