“हनुमान जी से आज तक नाराज क्यों हैं उत्तराखंड के इस गांव के लोग, कभी नहीं करते पूजा”
“तुलसीदास रचित रामचरित मानस, वाल्मीकि कृत रामायण, थाई रामायण रामकीऐन समेत दुनियाभर में पाई जाने वाली हर रामगाथा में भगवान राम के छोटे भाई के शक्ति लगने और फिर हनुमान जी के संजीवनी बूटी लाने का प्रसंग दिया गया है. हनुमान जी जब द्रोणागिरी पर्वत पहुंचने पर संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए तो पूरा पर्वत ही पूरा उठा ले गए. लंका पहुंचने पर सुषेन वैद्य ने संजीवनी बूटी को पहचाना और लक्ष्मण जी पर उसका प्रयोग कर उन्हें ठी कर दिया. ये प्रसंग सभी लोगों ने पढ़ा और सुना होगा. लेकिन, क्या आ जानते हैं कि इसके बाद संजीवनी पर्वत का क्या हुआ? वहीं, द्रोणागिरी पर्वत के लोग आज भी हनुमान जी से इतने नाराज क्यों हैं कि उनकी पूजा ही नहीं करते हैं”
“सुषेन वैद्य ने संजीवनी को चमकीली और विचित्र गंध वाली बूटी बताया है. रामगाथाओं में बताया गया है कि संजीवनी बूटी गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज थी. अब सवाल ये उठता है कि द्रोणागिरी पर्वत अब कहां है? माना जाता है कि हनुमानजी ने संजीवनी पर्वत को टुकडे़ करके लंका में कई जगह डाल दिया था. लिहाजा, ये पर्वत मौजूदा श्रीलंका में ही है. यह पहाड़ श्रीलंका के पास रूमास्सला पर्वत के नाम से जाना जाता है. श्रीलंका में उनावटाना बीच संजीवनी पर्वत के पास ही है. श्रीलंका के दक्षिण समुद्री किनारे पर कई जगहों पर हनुमान जी के लाए हुए पहाड़ के टुकड़े गिरे हैं.”

“कई जगह पर गिरे थे संजीवनी पर्वत के टुकड़े
खास बात ये है कि जिस-जिस जगह पर संजीवनी पर्वत के टुकड़े गिरे, वहां की जलवायु और मिट्टी तक बदल गई. इन जगहों के पेड़-पौधे श्रीलंका के बाकी इलाकों में पाई जाने वाली वनस्पति से काफी अलग हैं. रूमास्सला के अब हनुमान जी जब संजीवनी पर्वत उठाकर लंका पहुंचे तो एक टुकड़ा रीतिगाला में गिर गया था. रीतिगाला में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियां भी आसपास के इलाके से बिल्कुल अलग हैं. श्रीलंका के नुवारा एलिया शहर से करीब 10 किमी दूर हाकागाला गार्डन में इस पर्वत का बड़ा हिस्सा गिरा था. ये भी माना जाता है कि श्का में ‘श्रीपद’ नाम की जगह पर मौजूद पहाड़ नाराज है द्रोणागिरी के लोग

हनुमान जी जिस द्रोणागिरी पर्वत को उठाकर लंका ले गए थे, वो उत्तराखंड के चामोली जिले में जोशीमठ से करीब 50 किमी दूर मौजूद नीति गांव में है. द्रोणागिरी पर्वत को नीति गांव के लोग देवता मानते हैं. यहां के लोगों का कहना है कि हनुमानजी पूरे द्रोणागिरी पर्वत को नहीं ले गए थे, बल्कि पर्वत का एक हिस्सा उखाड़कर ले गए थे. स्थानीय लोगों का मानना है कि हनुमान जी ने जब द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़ा तो उस समय देवता साधना कर रहे थे. इस वजह से उनकी साधाना भंग हो गई. इतना ही नहीं लोग ये भी कहते हैं कि हनुमान जी ने पहाड़ देवता की दाईं भुजा उखाड़ दी थी. यही कारण है कि नीति गांव के लोग आज भी हनुमान जी की पूजा नहीं करते हैं.”