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“प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉक्टर फेल्डमैन ने अपने प्रयोगों द्वारा दर्शाया है कि कई झूठ जान-बूझकर नहीं, बल्कि स्वाभाविक रूप से बोले जाते है| उन्होंने दर्शाया कि जब दो व्यक्ति एक-दूसरे को अपना परिचय देते है, तब उन्हें एहसास भी नहीं होता कि उन्होंने अपने विषय में कितनी बातें सत्य नहीं बताई| इसका कारण उन्होंने बताया कि अपने आत्मसम्मान को सुरक्षित रखने के लिए कई लोगों का झूठ बोलने का स्वभाव बन चुका है| मनुष्य इस कदर चाहता है कि दूसरे उसे पसंद करे, उसके बारे में अच्छा सोचे कि जो बात उसे अच्छी रौशनी में डालती है, वह कह देता है, फिर चाहे वो सच हो या झूठ| ऐसा करते-करते उसकी यह आदत बन जाती है| अब यदि हम और गहराई में जाकर सोचे कि मनुष्य क्यों चाहता है कि सब उसे पसंद करे, तो मनोविज्ञान का मानना है कि उत्क्रांति द्वारा हमें ऐसी प्रवृत्ति मिली है| हमारे पूर्वज सामूहिक जीवन जीते थे| प्रकृति से बचने के लिए उन्हें एक दूर के सहयोग की आवश्यकता थी| ऐसे में यदि किसी को सब नापसंद करते, तो वे उसे अकेला छोड़ सक्ते थे अर्थात उसकी जान पर बन आती| इसलिए मनुष्य अस्वीकृति से डरता है| आज की दुनिया में समाजीकरण द्वारा बच्चों को सिखाया जाता है कि वे तभी अच्छे है, जब उन्हें दूसरे पसंद करे| यह सीख एक तरह से झूठ बोलने को बढ़ावा देती है| आज के ज़माने में लोग खुद के विषय में तब तक अच्छा नहीं महसूस कर पाते जब तक अन्य लोग उनको अच्छा न समझे| और जब तक वे खुद के बारे में अच्छा नहीं सोच पाते, उनका मन हलचल में रहता है और उन्हें लगता है कि झूठ बोलकर वे इस हलचल से बच सकते है|

एक और प्रसिध जांच में प्रोफेसर सैक्श ने झूठ बोलने के एक सामान्य कारण पर रौशनी डाली| उन्होंने दर्शाया कि लोग अक्सर डर के मारे झूठ बोलते है| यदि कोई व्यक्ति कहे कि देर से उठने के कारण वह दफ्तर देर से पहुंचा तो उसे दंड मिल सकता है लेकिन यदि वह ट्रैफिक जैम का झूठ…. 😃🙏

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