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सत्य को सुनना ही पर्याप्त नहीं होता अपितु सत्य को चुनना भी जरूरी है। सत्य की चर्चा करना एक बात है और सत्य की चर्या बन जाना एक बात है। आदर्शों का वाणी का आभूषण मात्र बनने से कल्याण नहीं होता, आदर्श आचरण के रूप घटित हो,तब कल्याण निश्चित है।

क्या मिश्री का स्मरण करने मात्र से मुंह में मिठास घुल जाएगी मिश्री का आस्वदन करना पड़ेगा।प्यास तो तब बुझती हे जब कंठ में शीतल जल उत्तर जाए। यदपी परमात्मा के नाम की ऐसी दिव्य महिमा है कि वह स्मरण मात्र से भी कल्याण करने में समर्थ है।
भगवान राम और कृष्ण इसलिए आज तक हर घर में और हृदय में विराजमान है क्योंकि उन्होंने आदर्श को मूल्यों को अपने जीवन में उतारा । दुनिया में सबसे प्रभावी उपदेश वहीं होता है। जो जीभ से नहीं जीवन से दिया जाता है ।सत्य से प्रेम मत करो बल्कि प्रेम ही आपके जीवन का सत्य बन जाए
जय श्री कृष्ण

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