अनुभव कहताहै खामोशियाँ ही बेहतर हैं शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं,जिंदगी गुजर गयी सबको खुश करने में जो खुश हुए वो अपने नहीं थे जो अपने थे वो कभी खुश नहीं हुए,,कितना भी समेट लो हाथों से फिसलता ज़रूरहै ये वक्त है साहब बदलता ज़रूर है.
घर के अंदर जी भर के रो लो पर दरवाज़ा हँस कर ही खोलो.!क्योंकि लोगों को यदि पता लग गया कि तुम अंदर से टूट चुके हो तो वो तुम्हें लूट लेंगे एक मन्दिर के दरवाजे पर बहुत अच्छी लाइन लिखी थी जूते के साथ – साथ अपनी गलत सोचभी बाहर उतार के आइए …इंसान,कभी गलत नहीं होता, उसका वक़्त गलत होता है मगर लोग इंसान को गलत कहेते हे जैसे कि पतंग कभी नहीं कटती, कटता तोधागा हे फिर भी लोग कहेते हे पतंग कटी”.
किसी ने कहा-जब हर कण कण मे भगवान है तो तुम मंदिर क्यूँ जाते हैं। बहुत सुंदर जवाब हवा तो धुप में भी चलती है पर आनंद
छाँव मे बैठ कर मिलता है वैसे ही भगवान सब तरफ है पर आनंद मंदिर मे ही आता है।
SONTOSH,,,