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इंसान का जीवन एक रेलगाड़ी की तरह है,रेलगाड़ी की भांति ही इंसान के जीवन में भी लोग आते रहते हैं,रेलगाड़ी की तरह ही जिंदगी कभी तेज़ चलती है तो कभी धीमी गति से,जीवन में रेलगाड़ी की भांति ही कुछ नये लोग आते हैं तो कुछ पुराने उतर जाते हैं पर जिंदगी का सफ़र चलता रहता है।रेलगाड़ी की भांति ही जब जिंदगी का भी आखिरी स्टेशन आता है तो सभी संगी साथी उतर जाते हैं कोई साथ नहीं रहता आगे का सफ़र अकेला ही तय करना पड़ता है…. इसी का नाम जीवन है!!!

तो हमेशा चलते रहो…. जब अच्छा समय नहीं रहा तो बुरा समय भी नहीं रहेगा!!गुरु बिन ज्ञान न ऊपजे, गुरु बिन मिले न मोक्ष।गुरु बिन लिखे न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष॥हीरा बनाया है ..”सतगुरु” ने सबको पर निखरा वो ही है ,जो तराशने की हद से गुजरा है

अपनी तरक्की को छुपाए रख बंदे….डर अनजान चोरों का नही…डरना तो अहंकार रूपी उस चोर से है जो अपने अंदर ही बैठा है, लूटकर तो वही जाएगा*: परमात्मा और सतगुरु से अधिक जीव का हितैषी और कोई नहीं है। वह जो भी सुख- दुख भेजते हैं,जीव के सच्चे रूहानी लाभ के लिए भेजते हैं, हमारी समझ अधूरी है

इसलिए हम दुख में घबरा जाते हैं

यदि आप केवल रेंग सकते हैं, तो उसके पास रेंगें
यदि आप ईमानदारी से प्रार्थना नहीं कर सकते,
अपनी शुष्क, पाखंडी, अज्ञेयवादी प्रार्थना प्रस्तुत करें;
क्योंकि ईश्वर अपनी दया से ख़राब सिक्का स्वीकार करता है।
यदि आपके मन में ईश्वर के बारे में सौ संदेह हैं,
उन्हें नब्बे संदेह बनाओ।
यह तरीका है।
हे साधक!
हालाँकि आपने सैकड़ों बार अपनी प्रतिज्ञाएँ तोड़ी हैं,*

सुख-दुख का आना-जाना सर्दी-गर्मी के आने-जाने के जैसा ही है। इसलिए इन्हें सहन करना सीखना ही उचित है

मेरे सतगुरू अपनी जुबां पर हमने तुम्हारे नाम की दास्तान लिखी है*
थोड़ी नही तेरी मेहर तमाम लिखी है मेरे सतगुरु
कभी हमारी तरफ भी ईक नजर मेहर कर लो मेरे मालिक*क्यों की हमने हर इक साँस तुम्हारे नाम लिखी है
हर घर से रौशन हो, कहीं भी ना अंधकार रहें ऐसी किरपा कर…. मेरे सतगुरु जी”
सुखी हर परिवार रहें ….
“रहमत” तेरी जिसके सिर पर….
*”सतगुरु” … वो ही “सत्संग” जा सकता है*…. मेहर करे तूं अपनी “दाता”….. *वो ही तेरे गुण गा सकता है, किरपा करें तूं जिसके ऊपर…. वो ही “रब” को शुक्र मना सकता है
खिलखिलाती जिंदगी होनी चाहिए…. *बातों में “रूहानी” होनी चाहिए*…. सारी दुनियां अपनी हो जाती है बस
“मेरे सतगुरु जी”की मेहरबानी होनी चाहिए

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