आज का भगवद् चिन्तन
सामाजिक भी बनें
हम केवल अपने लिए जीकर मानव नहीं कहला सकते हैं।मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक प्राणी होना अर्थात् अपने एवं अपनों के साथ-साथ समाज के लिए भी कुछ करना।समाज में हमारे बहुत सारे अधिकार हैं।
निजी सुख के लिए उन अधिकारों का अवश्य प्रयोग करना चाहिए लेकिन समाज के प्रति हमारे बहुत सारे कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व भी हैं इसलिए सामाजिक हित में उनका ध्यान रखना भी आवश्यक हो जाता है।
हमारा मनुष्य होना तब तक सार्थक नहीं जब तक इस प्रकृति-पर्यावरण एवं समाज के लिए ये जीवन उपयोगी न बन सके।
सामाजिक हित में धन से समर्थ हैं तो धन का दान करें,तन से समर्थ हैं तो तन का दान करें एवं दोनों से ही असमर्थ हैं तो कम से कम जो लोग सेवा कार्यों में लगे हैं उनका उत्साह वर्धन एवं मार्गदर्शन करते हुए मन का दान करें।
समाज में रहते हैं तो सामाजिक भी बनें।