Spread the love

राम नवमी विशेष

श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं।
भगवान श्री राम का जन्म चैत्र का महीना ,नवमी तिथि, शुक्ल पक्ष हुआ था। इसलिए इस दिन को राम नवमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। श्री राम के पिता का नाम दशरथ और माता का नाम कौशल्या था। राजा दशरथ अयोध्या के राजा थे।

तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के अनुसार‌ रावण नाम के राक्षस ने सभी देवताओं को हराकर अपने अधीन कर लिया। उसके भेजे हुए राक्षस जहां भी यज्ञ, श्राद्ध, और कथा होती वहां यज्ञ विध्वंस कर देते और बहुत उत्पात मचाते थे।

पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई। ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की। तब आकाशवाणी हुई कि मैं बहुत जल्द सूर्यवंश में मनुष्य रूप में अवतार लेकर उस राक्षस का वध करूंगा।

श्री राम जन्म कथा
त्रेता युग में रघुकुल शिरोमणि दशरथ नाम के राजा थे। उनकी कौशल्या, सुमित्रा और केकयी नाम की रानियां थीं। राजा दशरथ को एक बात कि चिंता रहती थी कि उनका कोई पुत्र नहीं है। राजा दशरथ ने अपनी चिंता गुरु ऋषि वशिष्ठ को बताई।

गुरु वशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि को बुलाकर पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया तो अग्निदेव हाथ में चरू हविष्यान्न (खीर)लेकर प्रकट हुए। उन्होंने राजा से कहा कि आप जैसा उचित समझे वैसे इसे अपनी रानियों में बांट दे। राजा ने खीर का एक भाग कौशल्या, एक भाग कैकयी और 2 भाग सुमित्रा में बांट दिए। इस प्रकार तीनों रानी गर्भवती हुई।

रामचरितमानस के अनुसार
नौमी तिथि मधु मास पुनीता।

सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥

मध्यदिवस अति सीत न घामा।

पावन काल लोक बिश्रामा॥

श्री राम के जन्म के समय चैत्र का महीना था, तिथि नवमी थी शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजीत मुहूर्त था। दोपहर का समय था ,ना ज्यादा सर्दी और ना ज्यादा गर्मी थी। वह पवित्र समय सब लोकों में शांति देने वाला था।

दीनों पर दया करने वाले प्रभु श्री राम प्रकट हुए। उनका मेघों के समान श्याम शरीर था और उन्होंने भुजाओं में दिव्य अभूषण धारण किए थे। वह वर माला पहने हुए थे , उनके बड़े-बड़े नेत्र थे। मा‌ता कौशल्या ने दोनों हाथ जोड़कर स्तुति की और बोली प्रभु जी यह रूप छोड़कर बाल लीला करो। यह सुनकर भगवान ने बालक रूप में रोना शुरू कर दिया।

इस प्रकार भगवान श्रीराम का धरती पर अवतरण हुआ। शुभ नक्षत्र में रानी केकयी ने एक और रानी सुमित्रा ने दो पुत्रों को जन्म दिया। श्री राम के जन्म के समय अप्सराएं नृत्य करने लगी और गंधर्व गाने लगे। देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की।

राजकुमारों के जन्म का समाचार सुनकर अयोध्या नगरी में चारों ओर हर्षोल्लास था। महाराज दशरथ ने ब्राह्मणों और याचकों को उन्मुक्त हस्त से दान दक्षिणा दी। विशिष्ट ऋषि ने महाराज दशरथ के चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार किया और उन्होंने कौशल्या के पुत्र का नाम राम, केकयी के पुत्र का नाम भरत, और सुमित्रा के पुत्र का नाम लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखा। श्री राम विलक्षण प्रतिभा के मालिक थे उन्होंने बहुत शीघ्र घुड़सवारी, अस्त्र शस्त्र विद्या सीख ली थी। श्री राम अपने गुरु जनों की खुब सेवा करते। श्री राम जो भी करते तीनों भाई उनका अनुकरण करते थे। चारों भाइयों ने माता-पिता को अपनी बाल लीला से हर्षित किया।

एक समय ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास उनके पुत्रों को ले जाने के लिए आएं क्योंकि यहां पर वह हवन करते थे वहां पर राक्षसों ने उत्पाद मचाया हुआ था। ऋषि विश्वामित्र जानते थे कि श्री राम का जन्म राक्षसों के नाश के लिए हुआ है। श्री राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ चले गए। वहां पर उन्होंने राक्षसी ताड़का और सुबाहु नाम के राक्षस का अंत कर दिया। जिसे वहां पर रहने वाले ऋषि मुनि भय मुक्त हो गए। ऋषि विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण जी को अपने साथ सीता जी के स्वयंवर में ले गए।
जय श्री राम
डॉ.विशाल जोशी


Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *