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“दुनिया में आज तक जितने भी लोग हुए हैं उन सभी में से ‘गौतम बुद्ध’ एक नाम हैं जिन्हें सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में जाना जाता है. उनके पदचिन्हों पर आज न जाने कितने लोग चल रहे हैं. दरअसल, बुद्ध कोई और नहीं बल्कि हमारी और आपकी तरह ही एक आम इंसान सिद्धार्थ गौतम थे. राजकुमार सिद्धार्थ गौतम, हिमालय की तलहटी के ठीक नीचे एक छोटे से राज्य में 567 ईसा पूर्व के आसपास पैदा हुए थे. उनके पिता शाक्य वंश के राजा थे. 

ब्राह्मणों ने पहले कर दी थी भविष्यवाणी 

दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि उनके जन्म के बारह साल पहले ही ब्राह्मणों ने भविष्यवाणी की थी कि वह या तो एक बहुत बड़े सम्राट बनेंगे या एक महान ऋषि. उन्हें सन्यासी बनने से रोकने के लिए उनके पिता ने उन्हें महल की चारदीवारी में ही रखा. गौतम राजसी विलासिता में पले-बढ़े, बाहरी दुनिया से एकदम दूर, ब्राह्मणों ने उनको ज्ञान दिया और महल के अंदर ही उन्हें तीरंदाजी, तलवारबाजी, कुश्ती, तैराकी और दौड़ में प्रशिक्षित किया गया. जब वे बड़े हुए तो उनका विवाह हुआ और वे एक पुत्र के पिता भी बने. लेकिन सबकुछ होते हुए भी सिद्धार्थ गौतम के लिए ये काफी नहीं था. 

सत्य की खोज में अपनी पत्नी और पुत्र को छोड़ा 
 
लेकिन एक दृश्य ने उनका जीवन बदलकर रख दिया. उन्हें महल से बाहर घूमते हुए तीन चीजें मिलीं: एक बीमार आदमी, एक बूढ़ा आदमी, और एक लाश को जलते हुए मैदान में ले जाया जा रहा था. उनके आराम भरे जीवन में इस अनुभव के लिए तैयार नहीं किया गया था. जब उसके सारथी ने उन्हें बताया कि सभी प्राणी बीमारी, बूढ़े और मृत्यु के अधीन हैं, तो वह बेचैन हो गए. जैसे ही वह महल में लौटे, उन्होंने एक भटकते हुए सन्यासी को शांति से सड़क पर चलते हुए देखा, जो बागे पहने हुए था और एक साधु का कटोरा लेकर चल रहा था. तब उन्होंने पीड़ा की समस्या के उत्तर की तलाश में महल छोड़ने का संकल्प लिया.

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