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आनंद का स्रोत

जीवन में आनंद का स्रोत केवल और केवल आपका मन ही है।आनंद कहीं बाजार में बिकने वाली वस्तु नहीं जिसे आप खरीद कर ला सको।

यदि मन संतुष्ट है तो अभावों में भी आपको प्रसन्नता प्रदान कर देगा और यदि मन असंतुष्ट है तो संपूर्ण ऐश्वर्यों के बीच में भी आपको दुःखी कर देगा।

आनंद तो दूध में घी की तरह आपके भीतर ही समाहित है,जब भी निकलेगा कहीं बाहर से नहीं अपितु स्वयं के भीतर से ही निकलेगा।

मृग की सुगंधी की तरह यदि आप भी आनंद को बाहर ही खोजते रहोगे तो हाथ सदा खाली ही रहेगा,वो बाहर नहीं अपितु भीतर ही है।

आनंद किसी परिस्थिति विशेष का नाम नहीं अपितु प्रत्येक स्थिति में मन को प्रसन्न रखना आ जाये इस कला का नाम है।मन से ही मोक्ष है,मन से ही बंधन है,मन से ही अभाव है और मन से ही आनंद है।

बस मन को साधने की कला आपको आ जाये क्योंकि जिसने मन को साधा,वही तो साधु भी है।

जय श्री राधे कृष्ण

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